3.11.14

शाहनामा

हर घड़ी इक नया डिरामा है
आदमी है या पायजामा है

वो बड़ा कारसाज है मितरोँ
उसका हर ज़िक्र कारनामा है

छप्पन इंची है ये छप्पन छूरी
भेस में मंतरी के गामा है

सच का जाहिर होना तो तय है
ड्यू प्रोसेस ज़रा खरामां है

लीला रचने का शौक़ रक्खे है
नाम पूछो, कहे सुदामा है

कोई धब्बा नहीं लगा अब तक
क्या उसकी खाल मोमजामा है

ये कैसा शाह बना है 'मन्नू'
हर कोई जपता शाहनामा है

1 comment:

Deepak Bahukhandi said...

Fine example of philosophical sarcasm.
Insaan ki zindagi hai kya
Ek pothi hai
aur sheershak galatnama hai